चाणक्य युद्ध की बात जानकर मगध की ओर प्रस्थान करते हैं. चाणक्य बताते हैं कि उन्हें रोचक युद्ध नहीं बल्कि निश्चित विजय चाहिए थी. तब उन्हें स्मरण हो आया अमात्य राक्षस का और वह संयोग से मिले भी उनसे. उससे भी बात नहीं बनती और सुनने में ये आता है कि मलय केतु और राजा पुरु युद्ध हार गए. दोनों अब सिकन्दर संधि कर उनकी ओर से लड़ेंगे. तब दुविधा में पड़े चाणक्य ठगा हुआ जानकार ये निश्चय करते हैं कि चन्द्रगुप्त से आकस्मिक दोबारा मिलते हैं और निश्चित भविष्य के लिए उनका मार्गदर्शन करते हैं.
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