आख़िरकार शेखर तैय्यार होकर अपनी मोटरकार में सबको विक्टोरिया ले जाता है जहाँ सारे रास्ते नोंकझोंक चलती रहती है। चारूलता और अन्नाकाली ख़ूब मज़े लेकर शेखर से मज़ाक़ करते हैं। गोलगप्पे खाने के दौरान शेखर को तीखी मिर्ची की वजह से हिचकियाँ आने लगती हैं तो ललिता को रोना आ जाता है क्यूँकि वो शेखर दा को परेशान नहीं देख सकती है। ख़ैर, लाल कोठी लौटते ही ललिता के मामा गुरुचरण बाबू और मामी शुभो देवी से शेखर का पता चलता है कि एक लाख रुपए क़र्ज़े की रक़म के ऐवज में लाल कोठी महाजन के पास गिरवी रखी है। शेख़र उन्हें आश्वस्त करता है कि वो अपने बाबा नवीनचंद्र बाबू से कहकर उनकी मदद करने का भरसक प्रयास करेगा।
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